कर्मों की अदालत



        ✍️ लेखक की कलम से.....

कर्मों की अदालत के चारों तरफ दीवारें नहीं होती है न ही छत होती है, न सबूत पेश कर्ता होता है न गवाह देने वाला होता है साथ ही दो ही पक्ष सिर्फ हाजिर होते है " एक कर्मकर्ता  " (जीव) वह...... " दुसरा न्यायकर्ता " (ईश्वर) होता है, इसमें तीसरे व चौथे पक्ष  की जरूरत नहीं होती है न ही गवाह की आवश्यकता होती है, न ही सबूत पेश कर्ता की जरूरत होती है यह बात हर प्राणी मात्र को कर्म करते समय ध्यान में रखना चाहिए की किए गये कर्मों का न्याय एक न एक दिन जरुर होना निश्चित है पर कब.....? यह न्यायाधिश (ईश्वरीय संविधान) के कार्य क्षैत्र में आता है तब यह अच्छे बुरे दोनो कर्मों का न्याय होता है जब इन अच्छे - बुरे कर्मो की लिस्ट न्याय प्रविष्ट होती है तब फैसला सुनाया जाता है तब संसार के लोगों में इसे राहु-केतु का प्रकोप व साढे साती लग गई कहते है जो एक महिने से लेकर ढाई बर्ष, साढे सात बर्ष तक का समय काल हो सकता है वह यह हर जीव के अपने-अपने अशुभ कर्मों पर आधारित होता है तद्पश्चात अच्छे दिन का आगमन भी अच्छे कर्मों के लिए होना निश्चित है कारण सुख ओर दुख का यह जोड़ी है जो बारी बारी से न्यायधिश के द्वारा भेजे जाते रहते है व कर्म के अनुसार जो कर्म कर्ता को इस न्याय की चौखट से गुजरना पड़ता है यानि की भोगना - पाना ही पड़ता है।

           दुख भोगना यह दुख की स्थिति को दर्शाता है व सुख पाना यह अच्छे कर्मों का ईश्वर के द्वारा दिया गया प्रसाद ही समझे, ईश्वर की कृपा ही जाने।

      "कृ" .....कर पुरुषार्थ   "पा"..... प्रसाद यही पाना है। वेदों में मनुष्य के हित की बातें ईश्वर की आज्ञा से महिर्षी ऋषियों के द्वारा कही गई बातों पर चलने वाला सुख पाने का  अधिकारी बन जाता है व विरुद्ध दिशा में चलने वाला दुख भोगने का अधिकारी बन जाता है। यह कर्मों का फल (कर्म सत्ता) किसी का छुपाये छूपता नहीं वह देर सबेर भोगना ही पड़ता है व शेष रह भी गया तो अगले जन्म में "पारब्ध का शेष कर्म फल" के रुप में अपनी जीवन यात्रा में आना व कर्मकर्ता को भोगना निश्चित है। यही कर्मों के फैसले की ईश्वरीय संविधान (कानून व्यवस्था) की कार्यप्रणाली है इसलिए हर काम में विशेष ध्यान देने की जरूरत है, बंद कमरों में व काली रातों में वह दीवारों के पीछे किए गये कूकर्मों का भी ईश्वर के लगे अदृष्य कँमेरों से (चित्रीकरण से) भी जीव बच नहीं सकते है कारण हजारों सैकडों बर्षों पहले से यह कँमरें कार्यरत है, गलत फेमी में न रहे सत्य को स्विकार कर पार दर्शक कर्म ही करे व अपने अगले जन्मों की ऐप. डी. सुनियोजित रूप से करे ताकि अगला जन्म सुखकर हो, साधन सम्पन्न हो।

          कहते है कि "कर्म सत्ता" से कोई नहीं बच सकता है, इससे भगवान भी अछूते नहीं रहे हैं, हा रही बात सुख - दुख की तो यह  बारी बारी से आएंगे व जाएंगे, नहीं तो हम जीवन में अनुभव भी कहा से लाएंगे, लोग कहते है की....

"अनुभव ही अनुगामी होते है"

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🌹जय श्री कृष्णा 🌹

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