शहर से गांव की ओर...


हिन्दूकाल 
आखिर क्यों मजदूर गांव भाग रहे हैं, शायद मुझे लगता है उन्हें भरोसा है कि गांव कभी उन्हें भूखा नहीं मरने देगा, गांवों में बेकारी है लेकिन भुखमरी तो नहीं ही होंगी, लाख आपदाओं, समस्याओं के बाद भी मैं दावे के साथ कह सकता हूँ की गांव में भूख से शायद ही कोई मरता हो। गांव शहर की तरह सपने पूरा नहीं कर पाता है लेकिन आवश्यकता के लिये लोगों को अपनी मिट्टी में ही आना होता हैं । पेड़ चाहे जितना भी फ़ैल जाये जड़े जड़े होती हैं, आज लोंगो को सपने नही पेट की आग बुझानी हैँ जरुरी आवश्यकता पूर्ण करनी हैँ... वह भी तब जब कोई सरकारी-गैर सरकारी सहायता सबके पास नहीं पहुंच पा रही। गांव अपने बलबूते पर जिन्दा है लेकिन शहर ज्यादा दिन अपने बूते जिन्दा नहीं रह सकते क्योंकि न तो वो अनाज पैदा करते हैं, न ही गांवो की तरह छाव देते हैं। वो जो पैदा करते हैं उसे सिर्फ और सिर्फ प्रदूषण कहते हैँ | अंत मे दो लाइने कह कर वार्ता ख़त्म करूँगा -
पुरखों की जमीं- जायदाद को न यूँ बेचकर जाया करों, 
कब छोड़कर शहर भागना पड़े, गांव मे भी घर बनाया करों... 
आपका ध्रुव अग्रहरि, 
जिला आजमगढ़, 
थाना अतरौलीया विधानसभा, 
ग्राम बाँसगाव.
9830844335

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