गंदी गलियों में किराये के मकान में चलती एक स्कूल की दास्तां

हावड़ा, 29 अक्टूबर 2018:
हावड़ा के पीलखाना इलाके में हिन्दी भाषियों की भारी आबादी के बीच स्थित एक स्कूल अपनी बदहाली का रोना रो रहा है और उसकी सुध लेने वाला कोई नहीं है। संकरी बदबूदार गलियां और चारों ओर से बड़ी-बड़ी इमारतों से घिरे होने की वजह से न तो यहां सूर्य रोशनी पड़ती है और न ही शुद्ध हवाओं का प्रवेश हो पाता है। ऊपर से किराए के जर्जर इमारत में स्कूल के चलने से आए दिन खौफ की स्थिति बनी रहती है। कई बार छोटे-मोटे हादसे हो चुके हैं लेकिन गनीमत है कि उन हादसों की चेपट में कोई छात्र नहीं आया… वरना 42 साल पुराने शिक्षा के इस बदहाल मंदिर के साथ मौत की दास्तां भी जुड़ जाती। साल 1966 में स्थापित हुए हावड़ा श्री महादेव विद्यालय की जर्जर मकान को अब किसी मसीहे की तलाश है। चारों ओर से बंद होने की वजह से कक्षाओं में बदबू आती रहती है। ऐसे में बच्चों से गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की अपेक्षा कैसे संभव हो सकती है। इस स्कूल की बदहाली अब शासन-प्रशासन के साथ-साथ शहर के संवेदनशील लोगों को मुंह चिढ़ाती नजर आ रही है। जमीनी हकीकत यह है कि इस परिवेश में एक नहीं बल्कि तीन स्कूलों का संचालन होता है और बच्चें यहां पढ़ने के लिए विवश है। विवशता इतनी कि एक ही बैंच पर दस से ज्यादा बच्चे बैठते हैं और कई बार तो वे गश्त खा कर गिर जाते हैं। इलाके में भारी संख्या में हिन्दी आबादी होने के बावजूद इसकी तुलना में हिन्दी माध्यम स्कूलों की किल्लत है और सब पता होने के बाद भी परेशान अभिभावक अपने बच्चों का यहां दाखिला कराते हैं। वर्तमान में यहां तीन सेक्शन में स्कूलों का संचालन होता है और तीनों स्कूलों के नाम भी अलग-अलग है। हावड़ा श्री महादेव विद्यालय, जो कि कक्षा पांचवीं से 10वीं तक है तो वहीं श्री महादेव विद्यालय और श्री गोबिन्द बाल विद्यालय में प्राइमरी के बच्चें पढ़ते हैं। कुल मिलाकर यहां 500 के आसपास छात्रों की संख्या है तो वहीं इन बच्चों को पढ़ाने के लिए 27 शिक्षक हैं। ऐसा भी नहीं है कि इस हालात से निपटने की दिशा में कोई प्रयास नहीं हुआ, बल्कि कह सकते हैं कि हर प्रयास विफल रहा। साल 2010 में हावड़ा नगर निगम से जमीन की मांग करते हुए स्कूल प्रबंधन की ओर से आवेदन किया गया, जिसके उपरांत नगर निगम के कमिश्नर द्वारा स्कूल के सचिव को 10 दिसंबर, 2010 को एक पत्र भेज सूचित किया गया कि जमीन के आवंटन की प्रक्रिया पूरी कर ली गई और इसके एवज में त्वरित प्रयास से 6 लाख रुपए निगम को मुहैया कराए जाए। जिसके बाद स्कूल प्रबंधन की ओर से 4 जून, 2011 को ड्राफ्ट के जरिए निगम को रुपयों की भुगतान भी कर दी गई। निगम द्वारा भेजे गए पत्र में साफ उल्लेखित था कि स्कूल को उक्त जमीन 99 साल के लीज पर दी जा रही है और सलाना 18 हजार रुपए किराए स्वरुप स्कूल निगम को देगा। निगम के वार्ड संख्या 13 स्थित 19 नं. सैलो मुखर्जी रोड को स्कूल के लिए आवंटित किया गया था। इतना ही नहीं 21 दिसंबर 2010 को स्कूल प्रबंधन द्वारा रजिस्ट्री फीस के रूप में 40330 रुपए जमा भी कराए गए, बावजूद इसके रजिस्ट्री नहीं हो सकी। क्योंकि इसी बीच 24 जून, 2011 को राज्य कैबिनेट की ओर से फैक्स के जरिए यह संदेश आया कि बिना राज्य कैबिनेट की अनुमति के निगम कोई भी जमीन संबंधी फैसला नहीं ले सकता है। ऐसे में मामला ठंडे बस्ते में चला गया। इस बीच स्कूल व निगम के बीच लगातार पत्राचार जारी रही और लगातार समस्या से अवगत कराने के बाद भी निगम की ओर से कोई भी संतोषजनक प्रत्युत्तर नहीं मिला। वहीं स्कूल के प्रिंसिपल जे. राय ने बताया कि हम अपनी ओर से कोशिशें किए जा रहे हैं और 28 जून को एक बार फिर से पत्र के जरिए निगम के समक्ष समस्या को उठाया गया है। आगे उन्होंने बताया कि इलाके के पूर्व विधायक स्व. अशोक घोष व वर्तमान विधायक व खेल राज्य मंत्री लक्ष्मी रतन शुक्ला ने भी स्कूल का दौरा कर हर संभव मदद का आश्वासन दिया। मंत्री लक्ष्मी रतन शुक्ला ने कई बार उक्त समस्या को लेकर निगम के मेयर से भी बातचीत की, लेकिन इन सब के बावजूद समस्या को कोई निराकरण नहीं हो सका। स्थानीय पार्षद गीता राय ने समस्या को लेकर मेयर व कमिश्नर से कई बार बातचीत की, फिर भी कुछ नहीं हो सका। इधर, स्कूल प्रबंधन कमिटी के अध्यक्ष अशोक कुमार शाह ने बताया कि इन विषम परिस्थितियों में स्कूल का संचालन मुश्किल है और किसी भी दिन कोई दुर्घटना घट सकती है। किराए के मकान में स्कूल के होने की वजह से हमारी भी कई तरह की लाचारी होती है। इमारत ढहने की स्थिति में है। बारिश के दौरान हालात और भी बद से बदतर हो जाते हैं, क्योंकि जल जमाव के बाद नालों की पानी कक्षाओं में प्रवेश कर जाती है। भाजयुमो के प्रदेश उपाध्यक्ष उमेश राय ने कहा कि महादेव विद्यालय की बदहाली के पीछे महज सियासी भेदभाव ही कारण है। जिस जमीन को स्कूल के लिए चिन्हित किया गया था, वहां बिना पार्षद के अनुमति के ही पार्क निर्माण कार्य शुरु की पहल हो गई। असल में वाम शासन के दौरान स्कूल को जमीन आवंटन की गई थी। लेकिन सत्ता के बदलते ही सियासी भेदभाव की वजह से फाइल को रोक दिया गया। हालांकि उक्त समस्या को कई बार उठाने के बावजूद किसी ने इस बदहाल स्कूल की सुध नहीं ली।

स्थानीय पार्षद गीता राय ने कहा कि देखिए हम सत्ता में नहीं है। हालांकि इस वार्ड में भाजपा का वजूद है और यह स्कूल मेरे वार्ड में पड़ता है इसलिए कई दफा निगम प्रधान के समक्ष मामले को उठाने के बावजूद किसी ने उक्त समस्या के निराकरण की ओर ध्यान ही नहीं दिया। राज्य सरकार और हावड़ा नगर निगम की लापरवाही व सियासी भेदभाव की वजह से आज भी स्कूल के बच्चों को नरकीय परिवेश में पढ़ना पड़ रहा है। स्थानीय विधायक व खेल राज्य मंत्री लक्ष्मी रतन शुक्ला ने कहा कि उम्मीद है कि जल्द ही इस समस्या का निराकरण हो जाएगा। मैं खुद स्कूल में जाकर वहां के हालात का जायजा लिया था और पूरे मामले में स्कूल के प्रिंसिपल से मेरी गहन बातचीत भी हुई थी।

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