यूजीसी कानून को समाप्त कर भारतीय उच्च शिक्षा आयोग के गठन के लिये प्रस्तावित अधिनियम का प्रारूप जारी

नई दिल्ली, 28 जून 2018

एक ऐतिहासिक निर्णय में भारतीय उच्च शिक्षा आयोग (विश्वविद्यालय अनुदान आयोग निरसन अधिनियम), विधेयक 2018, जिसका उद्देश्य यूजीसी अधिनियम को निरस्त करना और भारतीय उच्च शिक्षा आयोग की स्थापना करना है, को मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा तैयार किया गया है और इसे टिप्पणियों और सुझावों के लिये सार्वजनिक किया गया है। भारतीय उच्च शिक्षा आयोग का उद्देश्य उच्च शिक्षा की गुणवत्ता और शिक्षा के स्तर को सुधारना होगा।

केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने सभी शिक्षाविदों, हितधारकों एवं सामान्य जनों से विधेयक के प्रारूप पर उनकी टिप्पणियां एवं सुझाव 7 जुलाई 2018 सांय 5 बजे तक भेजने का आह्वाहन किया है। टिप्पणियों कोreformofugc@gmail.com पर ईमेल किया जा सकता है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार ने उच्च शिक्षा क्षेत्र के बेहतर प्रबंधन के लिये नियामक संस्थाओं के सुधार की प्रक्रिया को शुरू किया है। इसकी पूर्ति के लिये कई सुधार कार्यक्रम पहले ही आरंभ किये जा चुके हैं जैसे एनएएसी में सुधार, विश्वविद्यालयों को चरणबद्ध तरीके से स्वायत्त बनाने का नियमन, महाविद्यालयों को स्वायत्तता, सतत शिक्षा प्रणाली का नियमन और ऑनलाइन उपाधियों का नियमन इत्यादि।

यह मसौदा कानून नियामक व्यवस्था में सुधार करने की सरकार की प्रतिबद्धता को दर्शाता है जो कि शिक्षा क्षेत्र को अधिक स्वायत्तता प्रदान करने और उसके समग्र विकास के लिये है ताकि भारतीय छात्रों को ज्यादा किफायती और अधिक अवसर प्राप्त हो सकें।

■ नियामक प्रणाली में सुधार की प्रक्रिया निम्न सिद्धान्तों पर आधारित है:

• सरकार का कम दखल और ज्यादा काम:

नियामक के कार्य के दायरे को सीमित करना। शिक्षण संस्थाओं के प्रबंधन में अब और हस्तक्षेप नहीं।

• अनुदान की व्यवस्था को अलग करना:

अनुदान की व्यवस्था का उत्तरदायित्व अब मानव संसाधन विकास मंत्रालय का होगा। भारतीय उच्च शिक्षा आयोग अब केवल अकादमिक विषयों पर ध्यान केंद्रित करेगा।

• निरीक्षण पर आधारित व्यवस्था की समाप्ति:

पारदर्शी सार्वजनिक सूचनाओं के जरिये नियमन, उच्च शिक्षा की गुणवत्ता एवं मानकों के लिये पात्रता पर आधारित निर्णय प्रक्रिया।

• शिक्षा की गुणवत्ता पर जोर:

भारतीय उच्च शिक्षा आयोग को शिक्षा के स्तर को सुधारने की जिम्मेदारी सौंपी गयी है जिसमें विशेष तौर पर इस बात पर ध्यान रहेगा कि वास्तव में क्या सीखा गया, संस्थानों द्वारा शैक्षिक प्रदर्शन का मूल्यांकन, संस्थानों को मार्गदर्शन, शिक्षकों का प्रशिक्षण, शैक्षिक तकनीक को प्रोत्साहन इत्यादि। यह संस्थानों को शुरू और बंद करने के लिये मानक तय करने के नियम बनायेगा, संस्थानों को ज्यादा स्वायत्तता और लचीलापन प्रदान करेगा, संस्थानों में महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्ति के मानक तैयार करना, भले ही वह विश्वविद्यालय किसी भी कानून के तहत स्थापित किया गया हो (इसमें राज्यों के कानून भी शामिल हैं)।

• नियमन करने का अधिकार:

नियामक के पास शैक्षिण गुणवत्ता के मानकों का अनुपालन सुनिश्चित करने की शक्ति होगी और घटिया और फर्जी संस्थानों को बंद करने अधिकार भी होगा। अनुपालन नहीं करने की स्थिति में जेल और जुर्माना दोनों लग सकेगा।

● भारतीय उच्च शिक्षा आयोग (विश्वविद्यालय अनुदान आयोग निरसन अधिनियम), विधेयक 2018 की प्रमुख विशेषतायें:

आयोग का ध्यान उच्च शिक्षा की गुणवत्ता एवं शैक्षणिक स्तर को सुधारना होगा, यह वास्तव में क्या सीखा गया है इसके लिये नियम बनायेगा और शोध और शिक्षण इत्यादि के लिये मानक तैयार करेगा।

यह उन संस्थानों के मार्गदर्शन के लिये व्यवस्था तैयार करेगा जो कि अपेक्षित शैक्षिक स्तर को नहीं बनाये रख पा रहे होंगे।

इसके पास प्रस्तावित कानून में मौजूद वैधानिक प्रावधानों के जरिये अपने निर्णयों का अनुपालन सुनिश्चित करने की शक्ति होगी।

आयोग के पास इस बात का अधिकार होगा कि वह शैक्षिक गुणवत्ता से संबंधित नियमों का अनुपालन होने की स्थिति में शैक्षिक गतिविधियों को आरंभ करने की अनुमति दे सके।

आयोग के पास इस बात का भी अधिकार होगा कि वह किसी उच्च शिक्षा संस्थान की मान्यता ऐसी परिस्थितियों में समाप्त कर सके जहां पर नियमों एवं मानकों का जानबूझ कर या लगातार उल्लंघन किया जा रहा हो।

आयोग के पास इस बात का भी अधिकार होगा वह छात्रों के हितों को प्रभावित किये बिना उन संस्थानों को बंद करने का आदेश दे सके जो कि न्यूनतम मानकों का पालन करने में असफल रहेंगे।

आयोग उच्च शिक्षण संस्थानों को इस बात के लिये भी प्रोत्साहित करेगा कि वे शिक्षा, शिक्षण एवं शोध के क्षेत्र में सर्वोत्तम पद्धतियों का विकास करें।

अन्य नियामक संस्थाओं, मुख्य रूप से एआईसीटीई और एनसीटीई के प्रमुखों को सम्मिलित करने से आयोग और मजबूत होगा। इसके अतिरिक्त अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष शिक्षा एवं शोध के क्षेत्र में ख्याति प्राप्त ऐसे व्यक्ति होंगे जिनमें नेतृत्व क्षमता, संस्थानों का विकास करने की प्रमाणित योग्यता और उच्च शिक्षा से संबंधित नीतियों एवं कार्यों की गहरी समझ होगी।

विधेयक में दण्डित करने के प्रावधान भी होंगे, जो कि चरणबद्ध तरीके से काम करेंगे, इनमें उपाधि या प्रमाण पत्र जारी करने के अधिकार को वापस लेना, शैक्षिक गतिविधियों को रोकने का आदेश और ऐसे मामलों में जहां पर जानबूझ कर नियमों का उल्लंघन किया जा रहा है ऐसे मामलों में भारतीय अपराध संहिता की ऐसी धाराओं के तहत मुकदमा चलाने का अधिकार जिसमें अधिकतम तीन वर्ष के कारावास की सजा हो सकती है।

देश में मानकों के निर्धारण और उनमें समन्वय के लिये आयोग को सलाह देने के लिये एक सलाह समिति होगी। इसमें राज्यों की उच्च शिक्षा परिषदों के अध्यक्ष/उपाध्यक्ष शामिल होंगे और इसकी अध्यक्षता केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री द्वारा की जायेगी।

आयोग उच्च शिक्षण संस्थानों द्वारा वसूले जाने वाले शुल्क को निर्धारित करने के लिये मानक और प्रक्रिया भी बनायेगा और साथ ही केंद्र और राज्य सरकारों, जैसा मामला हो, को शिक्षा को सबके लिये सुलभ बनाने के लिये जरूरी कदमों की जानकारी भी देगा।

एक राष्ट्रीय आंकड़ा कोष के माध्यम से आयोग ज्ञान के नये उभरते क्षेत्रों में हो रहे विकास और सभी क्षेत्रों में उच्च शिक्षा संस्थानों के संतुलित विकास विशेषकर के उच्च शिक्षा के क्षेत्र में शिक्षा की गुणवत्ता को प्रोत्साहित करने से संबंधित सभी मामलों की निगरानी करेगा।

इस विधेयक के प्रारूप पर निम्न लिंक के जरिये जा सकता है:

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