
कोलकाता, 13 अगस्त 2025: सुरक्षा डायग्नोस्टिक लिमिटेड (“सुरक्षा क्लिनिक एंड डायग्नोस्टिक्स”) ने आज विश्व अंगदान दिवस के अवसर पर अंगदान के महत्व पर जागरूकता बढ़ाने और इससे जुड़े मिथकों को दूर करने के उद्देश्य से विशेष कार्यक्रम का आयोजन किया। इस वर्ष का थीम “किसी की मुस्कान की वजह बनें” रखा गया।
कार्यक्रम में प्रमुख रूप से डॉ. देबव्रत सेन, पूर्व प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष, नेफ्रोलॉजी विभाग, आईपीजीएमईआर/एसएसकेएम अस्पताल और डॉ. प्रतीक दास, कंसल्टेंट नेफ्रोलॉजिस्ट, रवींद्रनाथ टैगोर इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ कार्डियक साइंसेज, कोलकाता उपस्थित रहे। दोनों विशेषज्ञों ने अंगदान के चिकित्सकीय, नैतिक और कानूनी पहलुओं पर विस्तार से चर्चा की और लोगों से अंगदान का संकल्प लेने की अपील की।
विश्व अंगदान दिवस हर वर्ष 13 अगस्त को मनाया जाता है, जिसका उद्देश्य अंगदानकर्ताओं और उनके परिवारों के योगदान को सम्मानित करना और अधिक से अधिक लोगों को अंगदाता बनने के लिए प्रेरित करना है।
भारत में अंगदान मानव अंग एवं ऊतक प्रत्यारोपण अधिनियम, 1994 के तहत नियंत्रित है, जिसमें अंगों के व्यावसायीकरण पर प्रतिबंध और ब्रेन डेथ की कानूनी मान्यता शामिल है। रिपोर्ट के अनुसार, भारत अंग प्रत्यारोपण में दुनिया में तीसरे और कॉर्नियल ट्रांसप्लांट में दूसरे स्थान पर है। 2023 में देश ने 1,000 से अधिक मृत अंगदान का मील का पत्थर पार किया और हर साल लगभग 17,000–18,000 अंग प्रत्यारोपण होते हैं, जिनमें किडनी सबसे अधिक प्रत्यारोपित अंग है।
फिर भी, अंगदान की पहुँच और affordability एक बड़ी चुनौती है, क्योंकि अधिकांश सर्जरी निजी क्षेत्र में होती हैं, जो आम मरीजों के लिए महंगी है। आँकड़ों के मुताबिक, हर दिन 13 लोग अंग प्रत्यारोपण के इंतजार में अपनी जान गंवा देते हैं। वर्ष 2024 में 48,000 से अधिक अंग प्रत्यारोपण हुए।
लिंग असमानता भी एक गंभीर मुद्दा है—2019 से 2023 के बीच 63.8% जीवित अंगदाता महिलाएँ थीं, लेकिन पुरुषों को महिलाओं की तुलना में करीब 2.3 गुना अधिक अंग प्राप्त हुए। कुल 56,509 जीवित अंगदानों में से महिलाओं ने 36,038 अंग दान किए, पर उनमें से केवल 17,041 अंग महिलाओं को प्रत्यारोपित हुए, जबकि 39,447 अंग पुरुषों को मिले (बीएमजे रिपोर्ट 2025)।
भारत में प्रति दाता औसतन अंग प्रत्यारोपण की संख्या 2016 में 2.43 से बढ़कर 2022 में 3.05 हो गई है, जो चिकित्सा क्षमता में प्रगति दर्शाती है। विशेषज्ञों ने कार्यक्रम में पुरानी बीमारियों की शुरुआती पहचान और जनजागरूकता अभियानों की महत्ता पर जोर दिया, ताकि अंगदान की माँग और आपूर्ति के बीच की खाई को पाटा जा सके।
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