
स्मृतियों के उपवन में बैठे
गहरी निःश्वास लिए,
कभी मन हँसी के ठहाकों से गूंज उठे,
तो कभी आंसुओं के बरसात से !
बुढ़ापा कहता —
“जीवन के इन अंतिम चरणों में मत रो अब,
खो गए अतीत के उन स्वर्णिम पलों पे !
जो मिला वही सही,
जो न मिला तो क्या गलत, क्या सही?
यौवन में जो कर्म किए,
वही फल बुढ़ापे में संग दिए !”
पूरी जिंदगी का दर्पण है यह बुढ़ापा,
जहाँ अनुभवों ने किताबों के हर पन्ने भर डाले
संघर्षों और प्रयासों ने अब हार मान लिया,
कभी जीत तो कभी हार से पूरी जिंदगी को गुज़ार लिया !
सफेद बाल, चेहरे पर झुर्रियाँ और साथ में अनुभवों की छाया,
यही साथ ले तन अब थक गया,
पर फिर भी मन,
जीवन की माया से उभर न पाया !
हर क्षण का महत्व समझा,
हर अनुभव अनमोल लगा,
समय की नदी में लहरों की भाँति
यह नादान मन आंसुओं में भी मुस्कान ढूंढने लगा ।
✍️~ नीलिमा मंडल
